मध्यस्थता केन्द्र

विश्व के अनेकों देशों में विवादों को न्यायालय में जाने से पहले ही सुलझा लिया जाता हैं। भारत में मध्यस्थता के माध्यम से विवादों को सुलझाने की परम्परा पूर्व में भी रही है। मध्यस्थता पहले पंचायतों या सामुदायिक स्तर पर की जाती थी। मध्यस्थता एक स्वैच्छिक, मितव्ययी एवं स्वनिर्णय पर आधारित कम समय में विवाद का समाधान खोजने वाली प्रक्रिया है, जिसमें तीसरे पक्ष के द्वारा तटस्थ रूप से विवाद का समाधान खोजने में सहायता की जातीतीय पक्ष, जो समाधान खोजने में सहायता करता है, उसे मध्यस्थ कहा जाता है। इस प्रक्रिया को हा विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution) भी कहा जाता है। देश में करोड़ों प्रकरण लम्बित हैं, जिसमें समय और धन व्यय बहुत अधिक लगता है। यहीं न्याय में देरी का कारण है।

सामाजिक, पारिवारिक, वैवाहिक, वाणिज्यिक, लेन देन से सम्बन्धित विवादों का वैकल्पिक समाधान मध्यस्थता के माध्यम से किया जा सकता है। यह दोनों पक्षों के दृष्टिकोण एवं हित संरक्षण पर आधारित सौहार्दपूर्ण तामण में की गई प्रक्रिया है।

मध्यस्थता अधिनियम 2023

पूर्व में मध्यस्थता केवल न्यायालय से जुड़ी प्रक्रिया थी, परन्तु नवीनतम मध्यस्थता अधिनियम, 2023 आने के बाद एक आदर्श बदलाव आया है। विश्वासयुक्त विधिक ढाँचे के अन्तर्गत इस अधिनियम में न्यायालयौन मध्यस्थता के साथ कानून द्वारा समर्थित विश्वास की भावनां के साथ, निजी मध्यस्थता केन्द्रों का समर्थन किया गया है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नवीनतम विधिक सुधारों एवं संवैधानिक वैधता सहित इसे मान्य किया है। मध्यस्थता अधिनियम, 2023 संसद के दोनों सदनों से पारित होने एवं राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के पश्चात 15 सिंतम्बर अधिनियमित किया गया है।

मध्यस्थता अधिनियम 2023 में सम्बन्धित पूर्व विधियों का प्रभाव है, जैसे विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006; कम्पनी अधिनियम, 2013 एवं वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 की मध्यस्थता की समर्पित धाराओं को शामिल किया गया है।

मध्यस्थता अधिनियम 2023 के प्रमुख प्रावधान एवं विशेषताएं

  • वाणिज्यिक, वैवाहिक, पारिवारिक सम्पत्ति सम्बन्धी विवादों के समाधान के लिये मध्यस्थता को बढ़ावा देना।
  • सामुदायिक मध्यस्थता, संस्थागत निजी मध्यस्थता केन्द्र एवं ऑनलाईन मध्यस्थता का उन्नयन।
  • भारतीय मध्यस्थों का पंजीयन, योग्यता, प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान एवं उनका पंजीयन।
  • मध्यस्थता कौंसिल की स्थापना।
  • संस्थागत मध्यस्थता को मान्यता।
  • गोपनीयता, स्वनिर्णय एवं क्षेत्रीय अधिकारिता मुख्य आधार।

  • स्वेच्छा, विश्वास के साथ यदि कोई पक्ष आवश्यक समझे तो उसका न्यायालय जाने का अधिकार भी बना रहता है।

  • मध्यस्थता समझौतों को न्यायालयीन निर्णयों के समान विधिक मान्यता।

  • मध्यस्थता की अवधि का प्रावधान।

  • सिविल प्रक्रिया संहिता के अनुसार प्रवर्तनीय।

  • धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार जैसे प्रमाणित होने पर न्यायाल जाने का अधिकार।

मध्यस्थता क्या है?

  • मध्यस्थता वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution) का ही रूप है। मध्यस्थता एक स्वैच्छिक पक्षकार केन्द्रित वार्तालाप की प्रक्रिया है, जिसमें एक तटस्थ तृतीय पक्ष पक्षकारों के विवादों का विशिष्ट तरीके से सम्प्रेषण, संवाद कौशल एवं समझौता तकनीकी का प्रयोग करते हुए, सौहार्दपूर्ण वातावरण में समाधान निकालने में सहायता करते हैं। दोनों पक्षों को अपनी शर्तें रखने का अधिकार रहता है।
  • मध्यस्थता प्रक्रिया में पक्षकार केन्द्र बिन्दु हैं, न कि मध्यस्थ। अधिकांषतः पक्ष अपनी सक्रिय भूमिका में रहते हैं, परन्तु मुख्य भूमिका में मीडिएटर तथ्यात्मक पृष्ठभूमि को स्पष्ट करते हुए, दोनों पक्षों के बुनियादी हितों और सहमति के विकल्पों को चिन्हित करते हुए समाधान निकालते हैं।
  • मध्यस्थता एक सहायता प्राप्ति की अनौपचारिक प्रक्रिया है, जिसे संगठित रूप प्रदान किया जाता है, जिसमें तथ्यात्मक विधिक मुद्दों के साथ अन्तर्निहित कारणों पर बात होती है। व्यक्तिगत हित, व्यापार, व्यवसाय एवं समाज के हित में यह प्रक्रिया होती है, जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हो।
  • मध्यस्थता के माध्यम से दोनों पक्ष आत्मविश्वास के साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण में समस्या का समाधान खोजते हैं, जिसकी विधिक मान्यता है। दोनों पक्षों के साथ उनके वकील एवं विधिक सलाहकार उपस्थित हो सकते हैं।
  • मध्यस्थता पूर्व में न्यायाधीशों एवं अभिवक्ताओं द्वारा की जाती थी। वर्तमान समय में समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों, विशेषज्ञों, जो कि विधि सेवा प्राधिकरण नियमों के अनुसार प्रशिक्षित हों, करते हैं।
  • मध्यस्थता सफल होने पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर के साथ मध्यस्थ के हस्ताक्षर होते हैं तथा उसका रजिस्ट्रीकरण किया जाता है एवं जो कि विधि न्यायालय के रूप से मान्य है।

  • मध्यस्थता पूर्णतः गोपनीय एवं व्यक्तिगत प्रक्रिया है, जिसके अनुसार किसी भी पक्ष की लिखित सहमति के बिना प्रगट नही किया जा सकता है?

  • यदि मध्यस्थता सफल नहीं हुई है, तो उसकी जानकारी लिखितरूप में प्रस्तुत की जाना अनिवार्य है।

  • न्यायालय में वाद स्थापित करने से पूर्व (Pre-Letigation Mediation) भी मध्यस्थता की जाती है, जो दोनों पक्षों के लिये बंधनकारी एवं प्रभावी होती है। विशेषकर वैवाहिक, पारिवारिक, सामाजिक विवादों के लिये मध्यस्थता सबसे अधिक, व्यापक एवं स्वीकृत प्रक्रिया है, इसके अन्तर्गत किये गये समझौते बाध्यकारी होते हैं।

मध्यस्थता के प्रकार

न्यायालय द्वारा रेफर की गई मध्यस्थता (Mediation)

ऐसे मामले जो न्यायालय में लम्बित हैं, उन्हें न्यायालय द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 89 के अन्तर्गत भेजा गया हो। दोनों पक्षों में से किसी एक पक्ष के अनुरोध पर भी यह मध्यस्थता हो सकती है।

निजी/संस्थागत मध्यस्थता

निजी/संस्थागत मध्यस्थता के माध्यम से योग्य मध्यस्थ द्वारा मध्यस्थता की जा सकती है। देश में अनेक निजी मध्यस्थता केन्द्र स्थापित हो रहे हैं। निजी मध्यस्थता का उपयोग न्यायालय में वाद स्थापित करने से पूर्व बहुत उपयोगी रहा है। यह कानूनी विवाद से बचने का एक तरीका है। हिन्दू विवाह अधिनियम एवं विशेष विवाह अधिनियम के मामलों में विशेष गोपनीयता रखी जाती है एवं इसमें वैकल्पिक विवाद समाधान बहुत उपयोगी है, जिसका मूल उद्देश्य सुलह कराना, दोनों पक्षों को संरक्षण देना, सम्बन्धों को बनाये रखना एवं बच्चों को संरक्षण देना, एक लचीली चरणबद्ध प्रक्रिया द्वारा किया जाता है।

मध्यस्थता के लाभ

  • सरल एवं लचीली व्यवस्था
  • शीघ्र न्याय एवं कम खचर्चीली प्रक्रिया
  • न्यायालयीन मुकदमों को कम करने में सहयोग
  • गोपनीयता प्रथम सिद्धान्त
  • दोनों पक्षों के लिये रचनात्मक लाभ
  • दोनों पक्षों में प्रभावी संवाद
  • विधिक पात्रता
  • विश्वास को बढ़ावा एवं रिश्तों को संरक्षण
  • दक्षता एवं लागत की प्रभावशीलता
  • समान हितों का संरक्षण
  • कुशल विवाद समाधान
  • व्यवस्थित न्याय प्रणाली में सहयोग
  • निजी मध्यस्थता को बढ़ावा

निजी/संस्थागत मध्यस्थता के माध्यम से योग्य मध्यस्थ द्वारा मध्यस्थता की जा सकती है। देश में अनेक निजी मध्यस्थता केन्द्र स्थापित हो रहे हैं। निजी मध्यस्थता का उपयोग न्यायालय में वाद स्थापित करने से पूर्व बहुत उपयोगी रहा है। यह कानूनी विवाद से बचने का एक तरीका है। हिन्दू विवाह अधिनियम एवं विशेष विवाह अधिनियम के मामलों में विशेष गोपनीयता रखी जाती है एवं इसमें वैकल्पिक विवाद समाधान बहुत उपयोगी है, जिसका मूल उद्देश्य सुलह कराना, दोनों पक्षों को संरक्षण देना, सम्बन्धों को बनाये रखना एवं बच्चों को संरक्षण देना, एक लचीली चरणबद्ध प्रक्रिया द्वारा किया जाता है।

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